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lirik lagu azaad – akhil redhu

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[akhil redhu “azaad” के बोल]

[verse 1]
तुझे लगे के तू सही, तो मैं गलत ही हूँ
झूठ की नदी में सच की आग फिर सुलगती क्यों?
तड़पती मेरी रूह, ख़ुदा का हिस्सा हूँ
इंसान तेरी जात, हर बात पे बिगड़ती क्यों?
जहाँ भी देखूं हथियार है ज़ुबां के
मीठी*मीठी बोली, कड़वे हैं विचार के
इनका बस चले तो आज ही ये उनको टांग दे
जो इंसान इनकी छोटी सोच के खिलाफ थे

[chorus]
आज़ाद रहना है, गलत तो मैं गलत सही
बेड़ियों में क़ैद रहना सीखा ही नहीं
कर्मा में यक़ीन मुझको धर्म में नहीं
तेरे उच्च विचार मुझको सुनने ही नहीं
आज़ाद रहना है, गलत तो मैं गलत सही
बेड़ियों में क़ैद रहना सीखा ही नहीं
कर्मा में यक़ीन मुझको धर्म में नहीं
तेरे उच्च विचार मुझको सुनने ही नहीं

[verse 2]
हर तरफ दिखूंगा मैं, हर जहां भी ख्वाब बनते हो
मेहनतों के रंग से हक़ीक़तों में ढलते हो
सुकून के वो कतरे जब जुनूं में सुलगते हो
इस चेहरे पे हँसी दिखेगी, आँखें चाहे ग़म में हो
ना मैं महलों से हूँ, ना किसी गली का
मेरी इन कहानियों में सबका है सलीका
मुंबई*दिल्ली करके मुझको शहरों में ना बाटना
ये गीत सुन मेरे, मैं सारे हिंदुस्तान का
मुझे क्या ढूँढता? मैं तेरी ही अज़ा में हूँ
मेरी है कहानी, पर हाँ तुमसे ही बना मैं हूँ
पनाह में ही रहूँ? या तुमसे मैं लड़ूं?
फैसला था तेरा और देख मैं सज़ा में हूँ (सज़ा)
यकीन कर मेरा ये ख्वाब भी पुकारते
सरहदों से दूर देख एक नए जहाँ में
जिन बातों के ख़िलाफ़ तू शायद वो किस्से आम थे
ज़रूरी तो नहीं के सब जिये तेरे हिसाब से
[chorus]
आज़ाद रहना है, गलत तो मैं गलत सही
बेड़ियों में क़ैद रहना सीखा ही नहीं
कर्मा में यक़ीन मुझको धर्म में नहीं
तेरे उच्च विचार मुझको सुनने ही नहीं
आज़ाद रहना है, गलत तो मैं गलत सही
बेड़ियों में क़ैद रहना सीखा ही नहीं
कर्मा में यक़ीन मुझको धर्म में नहीं
तेरे उच्च विचार मुझको सुनने ही नहीं

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