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lirik lagu din dhal jaate – darshan pandya

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सपने हैं जल रहे, साँसें बस चल रही
गैरों का शहर, करूँ कैसे बसर ?
रुकते नहीं यहाँ, दौड़े*भागे सब यहाँ
ज़िन्दगी का रब्बा, हैं ये कैसा सफर ?

दिन ढल जाते हैं, रातें फिर आती है
ख्वाब ये दिखाते हैं फिर हमको रुलाते हैं
दिल धड़काते हैं और छोड़ चलें जाते हैं
धीरे*धीरे सारे*सारे सब भूल जाते हैं
दिन ढल जाते हैं, रातें फिर आती है
ख्वाब ये दिखाते हैं फिर हमको रुलाते हैं

कोई नहीं यहाँ जो थामे मेरा हाथ
हर सफर में हर डगर पे जो रहें मेरे साथ
अजनबी थे अजनबी ही रह गए हम यहाँ

रस्तों की बातें हैं, कहीं मूड़ जाते हैं
राही आते*जाते हैं, कहाँ रुक पाते है
जीवन तो सब लाते है, न कोई जी पाते हैं
दिन*रातें दिन*रातें चलते ही जाते हैं
दिन ढल जाते हैं, रातें फिर आती है
ख्वाब ये दिखाते हैं फिर हमको रुलाते हैं

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