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lirik lagu kashti – desert rock

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लमहें मेरे जहाँ है थम से गए
बेरंग अँधेरों में ग़ुम से गए
खाबों के पंखों को छूते हुए

हवाओं के रुख है बदल से गए

ग़म के तहखानों से, बंजर मैदानों से
उड़कर निकल जाने दे
बरसों से मैले जिस्मों के लिबाज़ों को
फ़िर से महक जाने दे

कश्ती डूबे जो, माँझी रूठे तो
तिनके जुटा के फिर तर जाने दे
इन तूफ़ानों से ऊँचे इरादों की
लहरें किनारों से टकराने दे

कश्ती डूबे जो, माँझी रूठे तो
तिनके जुटा के फिर तर जाने दे
इन अरमानों की ऊँची उड़ानों को
इनका मुकम्मल जहाँ पाने दे

राहों में थम से गए क़ाफ़िलें
खाबों के मंज़र से जो ना मिले
साँसें मेरी फ़िर भी चल जाएगी
संभालते*संभालते संभाल जाएगी

झुठे रिवाज़ों की बेदम दीवारों से
फ़िर आज टकराएगी
बरसों से सहमी सी मेरी आवाज़ें ये
सब्र कहाँ पाएगी

कश्ती डूबे जो, माँझी रूठे तो
तिनके जुटा के फिर तर जाने दे
इन तूफ़ानों से ऊँचे इरादों की
लहरें किनारों से टकराने दे

कश्ती डूबे जो, माँझी रूठे तो
तिनके जुटा के फिर तर जाने दे
इन अरमानों की ऊँची उड़ानों को
इनका मुकम्मल जहाँ पाने दे

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