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lirik lagu evening rattle on! – killerktherapper

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[verse]

grà·zie कर्मा सिर पे ले आया phobia
arachno ragnarok no pause nausea
call किया dad ने “डर भगा bruce लिया”
i was dead in the pool abuse जब loose किया

मैं तो musk मेरे पास तो musket must होगी?
dust होगी साफ़ जोगी जिंदगी ना रस्तोगी?
चिंता ना होगी उन मांझों के कष्टों की?
old flake gold वाली मन में वो l*st होगी?
चाहिए ना post मेरे नाम कि कोई close मुझे
चाहिए ना दिशा कभी गलत मेरे दोस्त मुझे
चाहिए ना लाल बत्ती वाली ऊँची post मुझे
चाहिए ना war eastcoast westcoast मुझे

confession of my dangerous mind aesop ना
चिट्ठी भेजें मुझे तू धीरे गा या श्लोक गा
हाँ बन सकूँ मैं dollar sign या फिर श्लोका
पर खेसर (केसर) के नाम पे मेरे नग्मों में ना धोका

वो मुस्कराहट ही नहीं जिस पे दिल निसार कर दूँ
इंसानियत नहीं मैं जिससे सच्चा प्यार कर लूँ
करता मैं तनक़ीद मेरे बढ़ रहे मुखालिफत
भेजे हुए खत मेरे बन गए थे बेगैरत

मैं अक्सर अक्स अपना तुम पे बरसाता रहता
जाने अनजाने में किये गुनाहो का रचेता
बहकी हुई बातों में बहक मैं गया था
धोखा मिला दिल मेरा सहम सा गया था

weed पीते देखा उसके नाम पे कायरों को
जिस्म को खिलौना बताते देखा था शायरों को
नल्ले उन लोगों को भी काम दिखता अफसरों में
टपरी पे बैठे कहते कि कुछ ना धरा अक्षरों में

ok इनके मशवरों पे मचाऊँ ना शोर
बस एक बात बतादो फिर क्यों सुनते तुम किशोर
या क्यों तुम्हारे कानों में सालों से बजे लता
मैं करने चला तो कहते जा इसको हटा
ढूंढा नहीं दौलत को था ढूंढा इंकलाब को
रोज मैंने जिया अपने हिंदुस्तान एक ख्वाब को
खुशियों कि बारिशों में दुख मिट्टी में मिल जाएगा
एकता का फूल मेरे मुल्क में भी खिल जाएगा

rappero के कामों से और शौक़ों से मैं दूर था
ना महंगे मेरे कपड़े ना ही धुएं को मैं फूकता
दोस्त बोले कैसा लेखक जिसकी कोई हूर ना
मैं किसी के भी दिल पे अब बरसाना चाहता नूर ना

खोई वो इबादतें खो गई वो आयतें
खो गए वो पल खो गई मेरी हिकायतें
खो गए करीब दिल के अब नहीं कहीं मिलते
ऐसा लगे उनके बिना जिंदगी मेरी मुश्किल में

अलग इन अल्फ़ाज़ों को समझ ना पाते लोग मेरे
कहते भारी लब्ज़ों से ना आएंगे views तेरे
१ से २, २ से ३ बढ़ जाएंगे
चिंता ना करो इन्ही से views एक दिन आएंगे

नई मुलाकातों से मैं फंसता रहता काँटों में
कितना भी कोशिश कर लूँ ना बच ता उनकी बातों से
मुझे है पसंद तभी तो जीना सन्नाटों में
कोई ना आए मेरी खाली सी उन रातों में

साये पीछे १०० डर ना लगता किसी १ से
१ दिन सबको मिल जाना है उसी रेत में
फिर क्यों खौफ में मैं काटूँ जिंदगी का वक़्त
जब पता है कि सूख जाएगा अपना ये रक्त
letter to my father मैं कभी ना इंकलाब छोड़ूँ
हक कि लड़ाई के लिए मैं उनके साथ दौड़ूँ
नास्तिक मैं कभी किसी के ना दर पे हाथ जोड़ूँ
१ है खुदा तो इतने धर्मों कि क्यों चादर ओढ़ूँ?

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