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lirik lagu sawan ke mahine mein, pt. 1 – mohammed rafi

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सोचता हूँ, पियूँ, पियूँ, ना पियूँ
चाक*दामन सियूँ, सियूँ, ना सियूँ
देख कर जाम कश्मकश में हूँ
क्या करूँ मैं, जियूँ, जियूँ, हाय, ना जियूँ

सावन के महीने में
एक आग सी सीने में
लगती है तो पी लेता हूँ
दो*चार घड़ी जी लेता हूँ
सावन के महीने में

चाँद की चाल भी है बहकी हुई
रात की आँख भी शराबी है
सारी क़ुदरत नशे में है जब चूर
अरे, मैंने पी ली तो क्या ख़राबी है?

सावन के महीने में
एक आग सी सीने में
लगती है तो पी लेता हूँ
दो*चार घड़ी जी लेता हूँ

सावन के महीने में
एक आग सी सीने में
लगती है तो पी लेता हूँ
दो*चार घड़ी जी लेता हूँ
सावन के महीने में

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